कन्हैया Poem by Ajay Srivastava

कन्हैया

कन्हैया तुम्हारी प्रतीक्षा मे है
आधुनिक भारत की बाला को
आज भी उस अलोकिक वस्त्र
की अवशयकता है
अंतर केवल इतना पहले अबला बाला की जरुरत थी
आज अबला व सबला दोनो तुम्हारे उस अलोकिक वस्त्र की आवश्यकता है 11


आज कनस के एक नही अनेक रूप है
जो आसमान छूती महगाई, जो घोटालो से भरे धडे तोड दे
बाढ के कहर से बचाने के लिए वृक्षारोपण नाम का पर्वत उठा ले
और जन - जन तक पहुँचा दे सुख व वृद्धि
और सब मिल के एक साथ सुर मै कहे
हाँ यही है, वही जो जन जन मे बसता
हाँ यही है, भारत मइया का कन्हैया 11

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