शायद वो अब बड़े हो गए। Poem by Tribhuvan Mendiratta

शायद वो अब बड़े हो गए।

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कुछ अच्छा नहीं लगता।
सच्चा नहीं लगता।
स्वाद बदल गया।
लब्ज़ कड़े हो गए।
शायद वो अब बड़े हो गए।
कभी खिलखिला के हँसते थे।
अब मुस्कराने से संकुचाते है।
शायद वो अब बड़े हो गए।
जो छोटी सी बात बताते थे,
अब दर्द भी छिपाते हैं।
शायद वो अब बड़े हो गए।
जिसके अरमान सो गए,
वो सचमुच बड़े हो गए।
कुछ तो बचपन रहने दो,
कभी मत कहो- बड़े हो गए।

Tuesday, January 21, 2020
Topic(s) of this poem: child,childhood
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