आज मुल्क का हर शै मुल्क पे निसार है
क्या आज़ादी की फिर एकहुंकार है.
हाँ,
ये रूत वही है, जान लो, सुन लो और पहचान लो
वही गाँधी का आदर्श है, वही भीम की शैली कहीं
पटेल की निति भी यहाँ है भगत की हुंकार भी है.
वहीँ दूर गद्दी पे बैठा कोई अंग्रेज,
इन सबको दबाने को बेक़रार है.
बात ये सब बता रही है, हाँ,
ये आज़ादी की ही हुंकार है.
तो मान लो ऐ तख़्त के ताजीर, के
ये देश की आवाज़ है.
ना मानना भी तो अहंकार है?
जरा देश को देखो, देश की इस पुकार को देखो
देखो इस ठण्ड में बैठे बच्चे, बहने, और उस बूढी माँ लाचार को देखो.
शानदार, अद्भुत, वीर रस भरपूर, यथार्थवादीता की आवाज़, जोशभरपूर! लयबद्धता का उत्कृष्ट नमूना!
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Kya bat hai.too good...........