आज मुल्क का हर शै मुल्क पे निसार है Poem by ainan ahmad

आज मुल्क का हर शै मुल्क पे निसार है

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आज मुल्क का हर शै मुल्क पे निसार है
क्या आज़ादी की फिर एकहुंकार है.
हाँ,
ये रूत वही है, जान लो, सुन लो और पहचान लो
वही गाँधी का आदर्श है, वही भीम की शैली कहीं
पटेल की निति भी यहाँ है भगत की हुंकार भी है.
वहीँ दूर गद्दी पे बैठा कोई अंग्रेज,
इन सबको दबाने को बेक़रार है.
बात ये सब बता रही है, हाँ,
ये आज़ादी की ही हुंकार है.
तो मान लो ऐ तख़्त के ताजीर, के
ये देश की आवाज़ है.
ना मानना भी तो अहंकार है?
जरा देश को देखो, देश की इस पुकार को देखो
देखो इस ठण्ड में बैठे बच्चे, बहने, और उस बूढी माँ लाचार को देखो.

Thursday, January 23, 2020
Topic(s) of this poem: life
COMMENTS OF THE POEM
Rehan 28 December 2020

Kya bat hai.too good...........

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Jagdish Singh Ramána 23 January 2020

It's going to a part of my heart: my poem list.

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Jagdish Singh Ramána 23 January 2020

शानदार, अद्भुत, वीर रस भरपूर, यथार्थवादीता की आवाज़, जोशभरपूर! लयबद्धता का उत्कृष्ट नमूना!

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