जब इरादा समंदर को हो जीतने का Poem by Ajay Kumar Adarsh

जब इरादा समंदर को हो जीतने का

जब इरादा समंदर को हो जीतने का
तो दरिया के पानी से क्या वास्ता है!
ये तय कर लिया जब है मंज़िल मेरी तू
तो राहें निशानी से क्या वास्ता है!


ज़हर बस हवा में जो भरते ही रहते
ना रहम-ओ-करम जो हैं ग़ैरो पे करते
उन्हें ज़िंदगानी से क्या वास्ता है!


मतलब परस्ती ही मकसद हो जिनका
जो चाहें उन्हीं का हो तिनका व ढिमका
उन्हें फिर रूहानी से क्या वास्ता है!


जीवन समर बन गया हर किसी का
है अपना ही किस्सा यहॉ पर सभी का
फिर तेरी या मेरी से क्या वास्ता है!


चलो अब फ़ज़ाओं में मस्ती लुटायें
जो पट हैं दिलों में सभी खटख़टायें
कि पतझड़ बहारों से क्या वास्ता है!

Friday, October 20, 2017
Topic(s) of this poem: love and dreams,peace,sad
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Ajay Kumar Adarsh

Ajay Kumar Adarsh

Khagaria (Bihar) / INDIA
Close
Error Success