धरातल पर नेगेटिव भी नहीं बना पाते हैं Poem by Ajay Kumar Adarsh

धरातल पर नेगेटिव भी नहीं बना पाते हैं

साहेब जो कुछ भी जुबान से निकालते हैं
हवा में उसकी खुबसूरत तस्वीर उभार जाते हैं
मगर जनाब मज़ा तो तब है, कि
धरातल पर नेगेटिव भी नहीं बना पाते हैं

Tuesday, December 26, 2017
Topic(s) of this poem: political,political humor,political utopia,politics
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Ajay Kumar Adarsh

Ajay Kumar Adarsh

Khagaria (Bihar) / INDIA
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