पुरानी यादों के मुरब्बे Poem by Dr. Sandeep Kumar Mondal

पुरानी यादों के मुरब्बे

खुशियों की चाशनी से भरे,
बीते हुए समय के डब्बे,
कोई चुपके से हथेली पर रख दे मेरे,
वो पुरानी यादों के मुरब्बे I

जीने की अफरा तफरी मे मैं,
जीवन का स्वाद ही भूल गया,
चटपटी चूरन सी लगती थी जो,
आज यादों की चाशनी मे घुल गया,
मुझे मीठा कभी पसंद न था,
गुज़रे पल लगते हैं आज मिठाई के डब्बे,
कोई चुपके से हथेली पर रख दे मेरे,
वो पुरानी यादों के मुरब्बे I

Friday, December 29, 2017
Topic(s) of this poem: memories
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Dr. Sandeep Kumar Mondal

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dhanbad, jharkhand
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