मुझे नाज़ है तुझपर Poem by Dr. Sandeep Kumar Mondal

मुझे नाज़ है तुझपर

मुझे नाज़ है तुझपर,
की क्या खूब तू सीखा है,
कुचल कर आगे बढ़ना,
तारीफों को धोखे से जड़ना I

मुझे नाज़ है तुझपर,
की क्या खूब तू सीखा है,
मिटटी पे सरहद खुरेदना,
बुरादे से इंकलाब भेदना,

मुझे नाज़ है तुझपर,
की क्या खूब तू जीता है,
औरों को नफरत का सबक,
कत्ल से ज़िहादी बना फिरता है I

मुझे नाज़ है तुझपर,
की क्या खूब तू चलता है,
मुल्क का नमक रगों में,
वफ़ा नामुल्क़ों का चुकता है I

मुझे नाज़ है तुझपर,
क्या खूब तेरी शान है,
तुझपर लिखे अलफ़ाज़ मेरे,
इंकलाब का अपमान है I

Friday, December 29, 2017
Topic(s) of this poem: patriotism
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Dr. Sandeep Kumar Mondal

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dhanbad, jharkhand
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