कुदरत का भी अजब दस्तूर है! Poem by Sachin Brahmvanshi

कुदरत का भी अजब दस्तूर है!

Rating: 5.0

कुदरत का भी अजब दस्तूर है!
जिससे तमन्ना थी बेइंतेहा, रूबरू होने की,
वही सनम हमसे खफा और बहुत दूर है,
मिन्नतें की खुदा से जिसे पाने की, अपनी शरीक-ए-हयात बनाने की,
वही अपनों को छोड़ किसी गैर संग मसरूर है,
कुदरत का भी अजब दस्तूर है! !

जिसे चाहा बेतहाशा, उसी पर छाया किसी और की हसरत का फ़ितूर है,
हमने की सच्ची वफा, जो उसे हर दफा हुई नामंज़ूर है,
अश्क बहाए हैं जिसकी याद में, उसीने दिए काँटें ही फिज़ाओं वाले जरूर हैं,
कुदरत का भी अजब दस्तूर है! ! !

वो ठहरी बेवफा, हम तो रहे वही दीवाने-मनमौजी-मतवाले,
आज भी अपनी चाहत पर हमें नाज़ है, गुरूर है,
जिसने ठुकराया, उसी को चाहने को यह दिल बेबस और मजबूर है, क्योंकि-
कुदरत का भी अजब दस्तूर है! ! ! !

कुदरत का भी अजब दस्तूर है!
Tuesday, January 16, 2018
Topic(s) of this poem: love and life
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 16 January 2018

बेहद खूबसूरत. नाकाम मुहब्बत का एक दिलचस्प अफसाना. धन्यवाद.

1 0 Reply
Sachin Brahmvanshi 16 January 2018

Dhanyawad Sir.

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Jaunpur, Uttar Pradesh
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