अपनी महबूबा को कभी ज़िंदगी का नाम न दो.
ज़िन्दगी बेवफ़ा है उसको ये ईनाम न दो.
मयकदे की रवायत में जो दाग लगाते हैं.
ऐसे दरिंदों को मरने दो मगर ज़ाम न दो.
मेरे महबूब है मंजूर मुझे हर सज़ा तेरी.
मगर मेरी वफ़ा का मुझे यूं दाम न दो.
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