ज़मीं लपेटता है आसमाँ समेटता है Poem by Nadia umber Lodhi

ज़मीं लपेटता है आसमाँ समेटता है

Rating: 5.0

ज़मीं लपेटता है आसमाँ समेटता है
कहाँ की बात को ये दिल कहाँ समेटता है
हुसैन रिफ़अतें तक़्सीम करता है अब भी
यज़ीद आज भी रुस्वाइयाँ समेटता है
वहीं पे गर्दिशें रुक सकती हैं ज़माने की
वो जस्त भरता है और पर जहाँ समेटता है
उसे बताना कि तुम जब कहीं भी टूटते हो
तुम्हारी किर्चियाँ कोई यहाँ समेटता है
किसी में 'नादिया' जुज़ इश्क़ इतना ज़र्फ़ कहाँ
है कौन बिखरे दिलों को जो याँ समेटता है

Monday, July 9, 2018
Topic(s) of this poem: verse
COMMENTS OF THE POEM
Ahmad Ali 28 October 2018

Nice amazing and simple

0 0 Reply
???? ???? 16 July 2018

بہت ہی عمدہ ہے نظم ہے

2 0 Reply
Nadia Umber Lodhi 04 October 2018

👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻

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Anuska malhotara 16 July 2018

Nice and simple and

3 0 Reply
Nadia Umber Lodhi 04 October 2018

😊😊😊😊😊😊

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