बैठा तो करो सन्नाटे में Poem by Tabish Raza

बैठा तो करो सन्नाटे में

बैठा तो करो छुप के साथ उसके सन्नाटे में
वो शक्स जो तड़पता है एक नज़र को अब
देखा तो करो बादलों को मुस्कुराते चांदनी रातों में
साथ बैठा तो करो कभी सन्नाटे में

छत के अंधेरे किनारे में कहीं रहता है वो अब
वो शख़्स जो डरता है बहुत ज़माने से
वो मुस्कुराता नहीं तुम्हारी तरह अब
जो जाम छलकाता हैं अपने कब्र के बहाने से

मुरझाता वो एक ही तो फूल है इन कांटो में
वो शख़्स जिसने गुनगुनाना छोड़ दिया है अब
कश चार लगाकर झूमा तो करो गानों पे
साथ बैठा तो करो कभी सन्नाटे में

Wednesday, July 29, 2020
Topic(s) of this poem: loneliness
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Tabish Raza

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