बंदे..
है लापता तू कहाँ बंदे?
देख यह कैसी नुमाईश है!
सितारों ने जो कि आज फिर
तुझसे मिलने की फरमाईश है |
रूठा है क्यूँ तू खुद से?
अनगिनत तेरी ख्वाहिश है,
भीग ले इन बूँदों में फिर
तेरे ही सपनों की बारिश है |
अंदर की मशाल जगा,
मेहनत कर, भले लहू जो बहा
बिन कुछ खोए ओ बंदे
इधर कुछ मिलता है कहाँ
कमर कस ले तू ओ बंदे
जख्मों पर तू फिर हँस दे|
उस पार अरे सरफरोश
निडर होकर अब जाना है,
इन तूफानों का क्या
रोज़ ही इनका अपना मनमाना है |
आग के दरिया को तुझे
कुछ यूँ पार कर जाना है,
जैसे सरहद के पार दबा कोई खज़ाना है |
चलता चल तू बिन रुके
कदमों तले तेरे ज़माना यह झुके
काली रात में तू डरना मत,
भले ही तुझसे दूनिया ना हो सहमत
मिलेगा ना तुझे कोई अपना यहाँ
पर छू लेगा तू इक दिन आसमाँ |
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