भूमिहार Poem by Shashi Shekher Singh

भूमिहार

सूरज सा तेज प्रकाश है,
शत्रुओ का जो बिनाश है,
जग माने जिसका लोहा,
जिससे धरा,
जिस से आकाश है।
हैं भारत का शौर्य ताज जो,
करता है हर भूमि पे राज जो,
काल भी कदमों में सर टेके,
कर दे अगर,
बस एक आवाज जो।
वो भूपति वंशज परशुराम के,
ब्राह्मण का क्षत्रिय अवतार,
ये सारे गुण हो जिसमें,
वो कहलाते है भूमिहार।

भूमिहार
Monday, September 3, 2018
Topic(s) of this poem: love and friendship
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Shashi Shekher Singh

Shashi Shekher Singh

Lakhisarai, Bihar
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