युग निर्मातायुग निर्माता
न दुनिया का डर, न खुद की फ़िकर,
पूरे मनोयोग, कर्तव्यनिष्ठा व सजगभाव से,
अपने शिक्षारूपी पौधे को सींचता है चाव से,
अपने सारे गुण उस पौधे के अन्दर भरता जाता है, धीरे-धीरे जब वह पौधा बड़ा हो जाता है,
सारे आँधियों व तूफानों को सह जाता है,
अपनी लहलहलाती फसल को देख,
जैसे किसान खुश हो जाता है,
वैसे ही यह माली अपने पौधे को देख मुस्कुराता है, सारा जग जब इसकी छांव पाता है व फल खाता है,
यह देख माली कभी-कभी इतराता है,
इसी माली को कोई शिक्षक कहता है,
कोई कहता भाग्य विधाता है,
जो हमें शिक्षा व संस्कार सिखाता है,
वह माली नहीं सच में युग निर्माता है।
शिक्षक छात्र-राष्ट्र का भाग्य विधाता है,
सच में युग निर्माता है, शिक्षक भाग्य विधाता है।
मौलिक रचना-
सुनील कुमार आनन्द
सहायक अध्यापक
पूर्व माध्यमिक विद्यालय बाबा मठिया
वजीरगंज गोण्डा उत्तर प्रदेश
Mo.8545013417