अनुराग अंकुर की प्रेरक कविता - 'गर्जन कर' । Poem by Anurag Ankur

अनुराग अंकुर की प्रेरक कविता - 'गर्जन कर' ।

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गर्जन कर-गर्जन कर
चुप बैठे क्या पाया है,
उठ कर प्रज्वलित
जो घना अंधेरा छाया है|
इस शुष्क रात में चंचलता भर
दामिनी की बौछार करा,
संग्राम विजय करके तू आ
जय-जयकार करेगी धरा||

जो तेरा है वह तेरा है
तुमने दान नहीं है लिया,
प्रकृति के हर मूल्यों पर
तेरा भी अधिकार भरा|
उठ, स्थिरता भर!
बाणों में संधान करा,
संग्राम विजय करके तू आ
जय-जयकार करेगी धरा||

तू मूक बना क्यों बैठा है
अस्थियों में झंकार करा,
जो सफल स्वरूप बिहान हुआ
जय घोष का होगा वृक्ष हरा|
निज महाशक्ति के प्रबल रूप से
रण में तू हाहाकार मचा,
संग्राम विजय करके तू आ
जय-जयकार करेगी धरा||

क्षमता तेरी तू ही जाने
दूजो ने अपमान करा,
इस काल चक्र परिवर्तन से
उन नयनों में सम्मान भरा|
जो उन्मुख थे, सब सन्मुख है
करते हैं सम्मान बड़ा,
संग्राम विजय करके तू आ
जय-जयकार करेगी धरा||

~ अनुराग अंकुर

POET'S NOTES ABOUT THE POEM
सफलता हर उस मेहनतकश व्यक्ति की दास होती है जिसने पूरे लगन के साथ अपने लक्ष्य को साधा हो। और लक्ष्य इन छोटे आत्मप्रवंचित लोभों के सहारे हो कर नहीं साधा जाता है। इसके लिए जरूरत होती है त्याग और कर्मनिष्ठ तपस्या की। यहां कविता में कवि बताना चाहता है कि - यदि व्यक्ति में यह गुण विद्यमान हैं तो वह निश्चय ही सफल हो सकता है। और सफलता के बाद ये सारी धरती आपकी विजय का गान करती नजर आएगी। उठो, देखो कहां है तुम्हार लक्ष्य और साधो इसे तब तक, जब तक की की ये धरा तुम्हारी जयकार न करे।
COMMENTS OF THE POEM
Anurag Ankur 06 December 2021

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