अश-आर आलम Poem by Ahatisham Alam

अश-आर आलम

कभी तो ख़्वाब ऐसा आये
जिसमे तुमको मुझसे मोहब्बत हो
जो हक़ीक़त में जी नहीं सकता
उसको ख्वाबों में ज़िन्दगी दे दो।
***

सर्द रात की सियाही
और मीलों तक मेरी तन्हाई
बस तेरी याद आयी
और शब मुख़्तसर हुयी।
***
वो मिलन के दो पल
उसके बाद
मीलों तक तन्हा सफ़र
वो महकते हुए लम्हात
वो बहकते हुए जज़्बात
मुझको क्या पता
मुझको क्या ख़बर
मीलों तक तन्हां सफ़र।
***


वो क्या समझेंगे भला
दर्द कितना है मुझे
किस क़दर ख़ुद में ही
टूट गया हूँ
ज़िन्दगी में सबकुछ है
फ़िर भी तन्हां छूट गया हूँ।
***

Thursday, March 21, 2019
Topic(s) of this poem: love
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