हां फिर से असफल हुआ हूं। Poem by Prabhakr Anil

हां फिर से असफल हुआ हूं।

हां फिर से असफल हुआ हूं, पर ये तो अंत नही है।

मैंने तो सब कुछ झोक दिया, बस एक सफलता पाने को।
है जिद्द शिखर तक जाऊंगा, काटों में राह बनाने दो।
हँसना है जी भर कर हँसले, खुश होने का तो तंत्र यही है।
हाँ फिर से असफल हुआ हूं, पर ये तो अंत नही है।
अये दुनिया सुन, षड़यंत्रों को बुन, देखु कब तक तू चाल चले,
मैंने भी तो, अब ठाना है, जीतूंगा तुझसे लग कर गले।
तेरे किये आघातों का, कोई तो पंथ नही है।
हाँ फिर से असफल हुआ हूं, पर ये तो अंत नही है।

Sunday, April 28, 2019
Topic(s) of this poem: motivation
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Prabhakr Anil

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Kotwan, . Barhaj deoria up
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