युद्ध प्रगति पर पूर्ण विराम - निबन्ध Poem by Alok Agarwal

युद्ध प्रगति पर पूर्ण विराम - निबन्ध

युद्ध क्या है? क्या युद्ध हथियारों से ही लड़े जाते हैं? इतिहास अपने जन्म से भयंकर, भयावह, क्रूर, सर्व-विनाशी युद्धों का गवाह रहा है/ जब से मानव की संसार में उत्पत्ति हुई, तब से वह लड़ रहा है/ और मैं कहता हूँ, कि लड़ाई क्यों न लड़ी जाये/ इस संसार में ना-ना प्रकार के जीव-जन्तु रहते हैं और आपस में युद्ध करते हैं/ जंगल के कठोर कानून में दया की कोई जगह नहीं है/ कोई शिकार है और कोई शिकारी/ हमारी मानव जाति भी इससे अछूती नहीं हैं/ जहाँ विरोध है, जहाँ मनभेद है, जहाँ मतभेद है; वहाँ दुश्मनी है, वहाँ लड़ाई है/ इस कर्मभूमि रूप में अवतरित रणभूमि में मनुष्य का कर्तव्य धर्म की रक्षा करना होना चाहिए/ धर्म-अधर्म सिक्के के दो पहलू हैं, जो संपूर्ण रूप से भिन्न होते हुए भी एक दूसरे से चिपके हुए हैं/

युद्ध केवल दो देशों या दो सभ्यताओं या फिर विश्व में साम्राज्य स्थापित करने के लिए नहीं लड़े जाते/ आज के युग में कोई भ्रस्टाचार के विरुद्ध जंग लड़ रहा है, कोई नारी शशक्तिकरण के लिए आवाज़ बुलंद किए है, तो कोई और अपने आप से ही लड़ाई लड़ रहा है/ आज के युग के भारतिय संदर्भ में, मेरा देश एक बदलाव के चरण से गुज़र रहा है/ एक आम आदमी युद्ध कर रहा है बेहतर और नवीन भारत निर्माण के लिए/ वो जंग लड़ रहा है उस रूढ़िवादी और निम्नस्तरीय मानसिकता के विरुद्ध जो महिलाओं को घर में कैद कर, अपने पुरुषार्थ का अंग प्रदर्शन करती है/ वो जंग लड़ रहा है उस भ्रस्टाचार के विरुद्ध जो एक गरीब बेसहारा किसान को आत्महत्या करने पर मजबूर करती है/ वो जंग लड़ रहा है उन पर्यावरण हितैषियों के विरुद्ध जो हमारे बेजुबान बाघ को पीछे से गोली मारकर अपनी मर्दांगी का झूठा और शर्मशार करने वाला रूप पेश करती हैं/ वो जंग लड़ रहा है उन धर्म के ठेकेदारों के विरुद्ध जो धर्म की ओट में आम आदमी को गुमराह कर उसकी आत्मा को मछ्ली बाज़ार में बेच देती हैं/ अभी तो आम से खास बने आदमी ने मात्र शंखनाद ही किया है, और पूरी सत्ता हिल गयी है/ अभी इस विजय-पथ पर उसके पहले चरण ही पड़े हैं, और पापी लोगों की कुर्सियां डगमगा रही हैं/ ये युद्ध लम्बा है, पर वो अपने पथ पर अडिग है/

आईए, अब मैं आपको युद्ध के दूसरे स्वरूप से मिलवाता हूँ, जिसपर हमे वाकई पूर्ण विराम लगाना चाहिए/ रामायण में और महाभारत में, जहाँ भगवान स्वयं अवतरित हुए; वहाँ पर भी लाख प्रयत्नो के बाद भी महाविनाश को न टाल सके/ टालते भी कैसे? भगवान के लाख समझने के पश्चात भी कौरवों को अपना अंत नहीं नज़र आया/ मनुष्य अपने भाग्य कि स्वयं शिल्पकारी करता है/ उसने सांसारिक सुखों के जाल में अपने आप को ऐसा फंसा लिया, जिसमे वो खुद मकड़ी कि भाँति मारा गया/ तो क्या पांडवो को पीछे हट जाना चाहिए था? एक अदार्श क्षत्रिय का कर्तव्य है की वो धर्म के लिए और अन्याय के विरुद्ध जंग लड़े/ इसके लिए चाहे उसे अपने प्राण कि आहुति ही क्यों न देनी पड़े/ इसी से मेरे मानस में यह प्रश्न उत्पन्न होता है, की महाभारत में वो कौन सी मजबूरी थी जिसकी वजह से अभिमन्यु ने अपनी जान न्योछावर करी? जिसके मामा स्वयं भगवान श्री क़ृष्ण हों, जिसके पिता विश्व के महान धनुर्धारी अर्जुन हों, उसको किसने रणभूमि में जाने के लिए बाध्य किया? ये अधर्म के प्रति धर्म का हल्लाबोल ही था जिसने अभिमन्यु को मौत से प्रेम करने के लिए हुंकार भरी/ न्याय के लिए सर न झुकना, पीठ न दिखाना ही राज धर्म है/ कौरवों ने भले ही उसकी हत्या कर दी हो, पर अमर कौन हुआ? अभिमन्यु मर कर भी जीत गया, सदा अमर हो गया और स्वर्ग के द्वार उस महान बलशाली तेजस्वी के लिए खुल गए/ क्या हमे उसकी मौत का मातम मानना चाहिए? कथोपनिषद में देवता यम महाराज कहते हैं:

इसका अभिप्राय है की जो मनुष्य ये जानते हैं की शरीर आत्मा का वस्त्र मात्र है, वही मनुष्य ज्ञानी हैं/ इसीलिये हम आज भी अभिमन्यु का नाम गर्व से लेते हैं, और उसका हमारी भारतीय सभयता में ऊँचा स्थान है/

अपने धार्मिक ग्रंथों से निकाल कर अब हम आगे बढ़ते हैं, और इतिहास के पन्नो पर नज़र दौड़ाते हैं/ महाराज अशोक ने कलिंगा युद्ध किया, महमूद गजनी ने हमारे देश को सत्रह बार लूटा, अकबर ने महाराणा प्रताप से अनेकों बार युद्ध किया/ नेपोलियन और बिस्मार्क ने संपूर्ण विश्व विजय का स्वप्न देखा/ पर इनसे हासिल क्या हुआ/ हज़ारों-लाखों मासूम लोगों की जाने गयी, कई घर उजड़ गए, कई वीरांगनाये विधवा हो गयी, कई बच्चे अनाथ हो गए/ इन महान राजा-महाराजाओं ने जीता क्या, जमीन या मुर्दाघर/ हमारा शरीर पाँच तत्वों से मिल कर बना है, और अंत में इसी मे मिल जायेगा/ जिसने इस परम रहस्य को जान लिया, वो अजर है, अमर है/ परंतु इसका ये अभिप्राय कदापि नहीं है, की हमें वैराग्य अपना लेना है/ हमें हर अन्याय के ख़िलाफ़ युद्ध का बिगुल बजाना है/

युद्ध की छाया में मानव मस्तिष्क असमंजस और डर में घिरा रेहता है/ ऐसे वातावरण में वो खुली साँस नहीं ले पाता और कुछ कलात्मक नहीं कर पाता/ उसकी मानसिकता संकीर्ण और कुंठित हो जाती है/ भारतीय इतिहास का स्वर्ण अध्याय गुप्त साम्राज्य में कभी नहीं लिखा जाता, अगर चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य जंग में उलझा रेहता/ शाह जहान कभी ताज़-महल का निर्माण नहीं कर पाता, अगर वो मुमताज़ को स्मरण करने की जगह युद्ध लड़ रहा होता/ अंग्रेज़ कभी विज्ञान और साहित्य में आगे नही बढ़ पाते, अगर वे एलीज़ाबेथ के काल के दौरान अपना ध्यान लड़ाई में केंद्रित करते/ हमारे देश की अर्थव्यवस्था आज कहीं बेहतर होती, अगर पाकिस्तान हमसे अलग नहीं हुआ होता; और अगर अलग हो भी गया था, परंतु कार्गिल और उससे पहले जैसी जंग नहीं लड़ता/ जंग दोनों देशों के लिए हानिकारक है/ पाकिस्तान को भी इन लड़ाइयों से बहुत नुकसान हुआ, और उसकी अर्थव्यवस्था भी पूर्ण रूप से चरमरा गयी/ आज की स्थिति भी मन में उमंग पैदा करने वाली नहीं है/ हमारे सकाल घरेलू उत्पाद का एक मुख्य हिस्सा रक्षा मसौदों कि भेंट चढ़ जाता है/ यही धन अगर शिक्षा, विज्ञान, कला, या अन्य किसी नेक कार्य में उपयोग होता, तो आज हम विकास के पथ पर अनेकों झंडे गाड़ रहे होते/ युद्ध के इस सूक्षम रूप से अन्य देश भी अनभिज्ञ नहीं हैं/ आज के देशों में भले ही गरीबों के पास खाने के लिए अन्न न हो, पर सैनिको की बंदूकों में गोलियाँ अवश्य होती हैं/

यह हास्यास्पद ही है, की युद्ध के समर्थकों का कहना है की विश्व शांति के लिए युद्ध आवश्यक है/ ऐसा होता तो प्रथम विश्व युद्ध के बाद हमे दूसरे विश्व युद्ध के दर्शन नहीं होते/ पहली ने क्या कम तबाही लायी थी, जो दूसरे ने अपना डरावना रूप दिखा दिया/ इन दो विश्व युद्धों ने तो युद्ध की परिभाषा ही बदल दी/ अब जंग दो देशों या दो सम्राटों के बीच नहीं लड़ी जा रही थी, अपितु अब पूरा संसार ही इस द्वेष और कलह का पात्र बन गया था/ जहाँ पहले हज़ारों-लाखों लोग मरते थे, वहाँ अब संपूर्ण पृथ्वी ही ख़तरे में थी/ मानव जाति का अस्तित्व ही अब तलवार की पतली धार पे लटक रहा है/ हिरोशिमा और नागासाकी ने वो करिश्मा कर दिखाया, जो विश्व में अभी तक नहीं हुआ था/ अब कोई भी देश कहीं से भी कहीं पर भी हमला करने की शक्ति रखता है/ अब जंग धनुष-बाण, तलवार, तोप और राइफल से ही नहीं होती है/ अब नाभकीय युद्ध, रसायनिक युद्ध, जैविक युद्ध, एलेक्ट्रोनिक युद्ध और अंतरिक्ष युद्ध ने युद्ध के स्वरूप और उसकी संरचना को ही बदल दिया है/ आने वाले समय में हम पृथ्वी का नाश करने के पश्चात, मंगल ग्रह पर युद्ध करेंगे/ मर जाएँगे, कट जाएँगे, पर हमारी युद्ध की भूख कभी नहीं खतम होगी/

अंत में मैं बस तीन शब्द कहना चाहूँगा, “बम, हम, ख़त्म”/

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