मौका Poem by Vishnu Pandit

मौका

कर वक़्त बर्बाद युहीं
रोता रहा ज़िन्दगी के लिए
निकल गयी वो आँखों के सामने से
बिना आहट बस पछताने को छोड़ के
पर पछताने का क्या फायेदा जब
नया मंजर है सामने मेरे
अच्छा यही की आँखें खोलूं और लगाऊं गले
उस पल को छोटा सही पर बस मेरे लिए रुका है,
शायद मेरी नाव पार लगाने का यही एक मौका है.

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Vishnu Pandit

Vishnu Pandit

Nanital, India
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