सपनो की बात Poem by Vishnu Pandit

सपनो की बात

सपनो में आ कर छु जाती है.
होती है वो बात जो नहीं हो पाई है.

सीने में आज भी दबे हुई हैं अरमान
आग जैसे बुझ के अभी ठंडी नहीं हुई है.
उम्मीद की राख के नीचे आज भी हैं अंगारे,
कुछ सुलगे हुए कुछ जलने के इंतज़ार में.

समय का एक झोंका आता है उठ कर कहीं से,
और ले आता है उनकी एक याद.
हटा देता है जले हों को,
निकल लता है दबी हुई बात.

कोशिश कर चुका हुईं मैं बहुत पर,
छलक जाते हैं जैसे सपने भरी हुई गगरी से.
अपने को पाटा हूँ उनके करीब ,
देखा करते था जिनको दूर से ही,
सिहरन दौड़ जाती थी आँख मिलते ही.
हर बार यही सवाल दोहराता था,
मिलेगी क्या मुझे वो जिसको मैं चाहता था?
और आज तक, सवाल का जवाब सिर्फ सपनो में मिला है
होती वो बात है जो नहीं हो पाई है.

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Vishnu Pandit

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Nanital, India
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