समझ Poem by Vishnu Pandit

समझ

ज़िन्दगी को कुछ दूर तक
समझा हूँ आज.
जो थे मेरे अपने
वे ही नहीं हैं मेरे साथ
दूर खड़े हैं वोह मुझसे
जो थे कभी मेरे पास
समझ न पाया उनके मन को
जब थे साथ - साथ
मन का कौटिल्य आज
खेल गया अपनी बिसात
जिनकी हर भावना का किया सम्मान
वे ही कर रहे हैं हमारा अपमान
आदर्शों को ताक पे रखकर
राह की मुश्किलों से लड़कर
जिनको शिखर तक पहुँचाया
वे ही सागर की गर्तों में
हमें पहुँचाने चले हैं आज.

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Vishnu Pandit

Vishnu Pandit

Nanital, India
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