निर्मल सपने Poem by Vishnu Pandit

निर्मल सपने

निर्मल सपनो की बस्ती से निकल आया हूँ,
मलिन असत्य के शहर में.
सुन्दर उजली दुनिया से दामन छूटा तोह पाया,
खुद को इस अँधेरे जंगल में.
रात कटती न जहाँ बिना सहारे,
न दिखते सूरज, चाँद या तारे.

किसको गिनकर रात गुज़ारूँ?
रातभर मैं, यह सोचकर जागूँ.
आँख लगी तोह खुद को पाया,
सपनो की उसी बस्ती में.
जहाँ का सूरज कभी न ढलता.
समय भी थोडा सुस्ता कर चलता
दूर क्षितिज में चाँद भी जलता
और मेरा स्वप्न है पलता.

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Vishnu Pandit

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Nanital, India
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