निर्मल सपनो की बस्ती से निकल आया हूँ,
मलिन असत्य के शहर में.
सुन्दर उजली दुनिया से दामन छूटा तोह पाया,
खुद को इस अँधेरे जंगल में.
रात कटती न जहाँ बिना सहारे,
न दिखते सूरज, चाँद या तारे.
किसको गिनकर रात गुज़ारूँ?
रातभर मैं, यह सोचकर जागूँ.
आँख लगी तोह खुद को पाया,
सपनो की उसी बस्ती में.
जहाँ का सूरज कभी न ढलता.
समय भी थोडा सुस्ता कर चलता
दूर क्षितिज में चाँद भी जलता
और मेरा स्वप्न है पलता.
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