न रंगू कभी ख़ून से Poem by Akash Duhan

न रंगू कभी ख़ून से

जो कोई मुझे रंगरेज़ बनाए
यूँ अवसर दे अपने देश को रंगने का
लाल न होगा रंग कभी
लाल प्रतीक है
कुर्बानी का
बलिदान का
देश के लिए परित्याग का
पर आज नही कोई त्याग है करता
ओर न ही
कोई आदर है करता
स्वतंत्रा मे दिए गए बलिदान का
बल्कि जिस माँ के लाल कहलाते है हम सब
उसी का सीना लाल कर देते है
जात पात क नाम पर
धर्म के नाम पर
खून तो सबको लाल ही दिया है माँ ने
तो व्यर्थ मे बहाके देखना क्यू है
बहाना ही है तो धरती माँ के आँचल
की इज्ज़त क लिए बहाओ
उनकी रक्षा क लिए बहाओ
तभी लाल कहलाने को साक्ष्य करोगे
खुद को भी
ओर
खुद के खून को भी

POET'S NOTES ABOUT THE POEM
it feels very bad when i see sense of patriotism is getting diminished day by day....its not all over yet....but too make our country the golden bird we need to have some more passion
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success