कुछ तो हूँ Poem by Vishnu Pandit

कुछ तो हूँ

कुछ तो हूँ अटका हुआ सा,

राह चलता पर रुका हुआ सा;

चेहरा तेरा, यादें तेरी; मेरा अक्स

आईने में अब छिपा हुआ सा.

तुझे ही बताना, जाताना भी तुझको,

मेरा रब कहकर बुलाना भी तुझको;

दूर हो बैठा है जैसे रूठा हुआ सा,

पर सदके में सर आज भी जैसे झुका हुआ सा.



खोकर लौटाया हुआ सा,

बिखर कर बनाया हुआ सा;

घर हमारे वादों का, तेरी दुनिया
मेरा सपना, मिलकर बसाया हुआ सा.

आज सूना हो चला, ये बाग, ये आँगन.

अब आता नहीं यहाँ पतझड़ न सावन;

बागबान के हाथों छूता हुआ सा,

घर ये अब टूटा हुआ सा.

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Vishnu Pandit

Vishnu Pandit

Nanital, India
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