कुछ तो हूँ अटका हुआ सा,
राह चलता पर रुका हुआ सा;
चेहरा तेरा, यादें तेरी; मेरा अक्स
आईने में अब छिपा हुआ सा.
तुझे ही बताना, जाताना भी तुझको,
मेरा रब कहकर बुलाना भी तुझको;
दूर हो बैठा है जैसे रूठा हुआ सा,
पर सदके में सर आज भी जैसे झुका हुआ सा.
खोकर लौटाया हुआ सा,
बिखर कर बनाया हुआ सा;
घर हमारे वादों का, तेरी दुनिया
मेरा सपना, मिलकर बसाया हुआ सा.
आज सूना हो चला, ये बाग, ये आँगन.
अब आता नहीं यहाँ पतझड़ न सावन;
बागबान के हाथों छूता हुआ सा,
घर ये अब टूटा हुआ सा.
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