उस गीत को लिखने बैठा हूँ Poem by Vishnu Pandit

उस गीत को लिखने बैठा हूँ

उस गीत को लिखने बैठा हूँ,
जिसके बोल मुझको आते नहीं.
1) सोच -सोच कर मैं अब हारा,
यह सब तन मन जिसपे दे वारा,
वे ही कहते हैं अब तुम मुझको भाते नहीं.
2) जिनकी तरफ आँख उठा के न देखा कभी,
अंतर में जलती ज्वाला जिस पल उन्हें सोचा कभी
आँख चुरा के बचते हैं अब, मन का दीप भी जलाते नहीं.
3) जब भी रूठे तोह मनाया उन्हें,
हर वक़्त पलकों पर बिठाया जिन्हें,
उन आँखों को देखना वो चाहते ही नहीं.
4) मन में जिनके सपने थे,
जिनकी याद में न हम सोते थे,
उन्हें हम अब याद आते नहीं.

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Vishnu Pandit

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Nanital, India
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