एक दिन गोनू झा निशचय कयलनि जे, जेना हो, माँ कालीक दर्शन कायल जाय | एहि लेल ओ निरन्तर हुनक आराधना करय लगलाह | काली प्रसन्न भेलथिन आ निशचय कयलनि जे साक्षात् दर्शन देबासँ पूर्व गोनू झाक साहसक परीक्षा लेल जाय |
एक राति गोनू झा सूतल रहथि | निसभेर रातिमे माँ कालीक दर्शन देलथिन | हुनकर रूप विकराल छल | एक सय मुहँ रहनि मुदा हाथ दुइये टा | गोनू बाबू हुनकर ई रूप देखि कनिको विचलित नहि भेलाह | ओ पहिने तs हुनका प्रणाम कयलनि मुदा गोनू ठठाकs हँसि पड़लाह |
माँ कालीककेँ विशवाश रहनि जे हुनकर ई भयंकर रूप देखि गोनू झा विचलित भs उठताह, मुदा हुनका हँसैत देखि पुछलथिन - ' की, हमर ई रूप देखि अहाँकेँ डर नै भेल? '
माँ काली कहलथिन - ' गोनू अहाँक मन्तव्य एकदम सत्य अछि | मुदा ई तs कहू जे हमरा देखि अहाँकेँ हँसि कियक लागि गेल? '
गोनू झाक उत्तर भेलनि - ' हे माँ हमरा मात्र एक मुहँ आ एक नाक अछि, मुदा दु टा हाथ रहितो सर्दी भेला पर नाक पोछैत - पोछैत फिरीसान रहैत छी ' |
- ' अहाँ कहs की चाहैत छी? '
- ' अहाँकेँ एक सय मूँह आ एक सय नाक अछि, मुदा हाथ दुइये टा | हमरा चिन्ता भs गेल जे सर्दी भेला पर अहाँ अपन नाक सभ कोना पोछैत होयब | आ यैह कल्पना करैत हमरा हँसी लागि गेल ' |
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