चिडया Poem by Ajay Srivastava

चिडया

एक चिडया स्वतंत्र आकाश मै विचरण करती हुई
आचनक उसे बहुत तेज भुख लगी और वह नीचे उतरी 11
उतर एव़ दक्षिण दिशा के कई मकान की मुडेर पर बेठी
पर उसे खाने के लिए एक दो दाने ही मिले 11
और वह ऊड चली पूर्व एव़ पश्चिम दिशा मे अपनी भुख को मिटाने
निचे उतर जैसे ही कुछ मकान की मुडरो पर बेठी
पर उसे खाने के लिए कुछ दाने ही मिले 11
पर चियडा की भुख शा त. नही हुई
और वह टुकटकी लगए ईधर उधर देखती
सोच मे पड गयी ईतने बडे ससार कोई
मेरी भुख को पूरी तरह से नही मिटा सकता 11
आप इस भुख नाम की चियडा का नाम जानते हे
जो आनशिक रूप मे मिलती
पूरी तरह से उपलब्ध नहीं है इस चियडा का नाम हे - सच - 11

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