असऱ.... Poem by Ritika Abigail

असऱ....

असऱ उनकी बाहों का था शायद
इक नयी ज़िन्दगी का एहसास हुआ
जब हंस के वो गले लगा
हर दर्द कम लगने लगा ।
कुछ यू देखा उन आँखों ने
गहराइयों का अन्दाज़ा ना लगा
कुछ हलचल सी अब इस दिल में है
ज़िन्दा हूँ मैं बेशक़
कुछ ऐसा अब लगने लगा ।

#Love
#RA

Sunday, June 8, 2014
Topic(s) of this poem: love
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