यश - वैभव Poem by Shobha Khare

यश - वैभव

यश - वैभव के ठाट- बाट,
अब सभी झमेले लगते है
पथ कितना भी हो भीड़ भरा
दो पाँव अकेले लगते है I
हल करते- करते उलझ गयी,
भोली - सी एक पहेली को
चुपचiप देखती रहती हूँ
सोने से मंढ़ी हथेली को II

Monday, January 12, 2015
Topic(s) of this poem: life
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