रहस्य Poem by Shobha Khare

रहस्य

Rating: 5.0

सबको मिलता समय से, यश धन सत्ता नाम
एक तुम्हारे ही नहीं, सबके दाता राम
इस सराय मे रुके है कितने ही मेहमान
कोई कितने दिन टिके यह जाने भगवान
क्यो आया संसार मे कौन बताए मोय
इस रहस्य को आज तक, समझ सका न कोय
तेरा सिर थक जाएगा, उठा उठा कर भार
कुछ तो रब पर छोड़ दे, मेरे बरखुरदार
रोजी रोटी नेमत, सबको खुदा दिलाय
पता नहीं इंसान क्यो अपना नाम बतायII

Tuesday, January 13, 2015
Topic(s) of this poem: Life
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 13 January 2015

जीवन एक रहस्य है, हम मानते हैं. लेकिन मनुष्य अहम् के वशीभूत हो कर मानता है कि सब कुछ वही कर रहा है. काश, इस रहस्य का अंशमात्र भी हम समझ पाते. बहुत सुंदर एवम् अर्थपूर्ण रचना. धन्यवाद, शोभा जी. कुछ पंक्तियाँ आपकी कविता से: इस सराय मे रुके है कितने ही मेहमान / कोई कितने दिन टिके यह जाने भगवान / रोजी रोटी नेमत, सबको खुदा दिलाय / पता नहीं इंसान क्यो अपना नाम बताय.

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