प्रयास Poem by Shobha Khare

प्रयास

जो पूजा करनी थी मुझको
हुई न वह जीवन मे पूरी
निष्फल किन्तु प्रयास न होगा
भले अर्चना रही अधूरी I


खिलने से पहले झरती जो
वह कालिका भी कुछ कह जाती
है वह भी नदी सार्थक जो
पथ नहीं मरुस्थल मे पाती I

वह तुझे पता है भलीभाति
जीवन मे कुछ भी व्यर्थ नहीं
जो पीछे छूट गया लगता
खोया है उसका अर्थ नहीं II

Thursday, April 23, 2015
Topic(s) of this poem: life
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