दिन और रात मे भेद न वे
करते, वे हर छण आते है
सच, मेरे पागल मन को वे
सुख अतुल्यनीय पहुंचाते है
मेरे सब कविताओ मे उनकी
अगुवानी के स्वर गूंज रहे
कविता की संख्या है अपार
अनकहे बहुत, कम गए कहे
मेघो के रथ या वनपथ से
वे निपट अकेले आते है
सावन हो अथवा हो फागुन
कौलाहल नहीं मचाते हैII
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem