पथिक Poem by Shobha Khare

पथिक

चुनते हुए सुमन उपवन से
पथिक करों यात्रा पूरी
ठहरो नहीं रहो तुम चलते
चलना है अब मजबूरी
दोनों ओर लगी फुलवारी
चुन चुन फूल बनी माला
जीवनका पल पल सार्थक कर
भरले उर मे उजियाला II

Thursday, April 23, 2015
Topic(s) of this poem: life
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