लम्हे Poem by Shobha Khare

लम्हे

लम्हे का भरोसा नहीं कब ज़िंदगी छूट जाये,
फिर क्यो मौत का डर दिल मे उबलता रहता है I

जानता है परवाना कि जल जाएगा उसके पहलू मे,
फिर क्यो शमा को देख कर वो मचलता रहता हैI

कुछ भी हो मगर जिंदिगी बड़ी दिलचस्प है दोस्तो,
मंज़िल वो ही पाता है जो हर हiल मे चलता रहता है I

हर ठोकर से मेरी मानो तो एक सबक सीखो दोस्तो, ,
एक इंसान ही तो है जो गिर गिरके समहलता रहता है I

Sunday, July 19, 2015
Topic(s) of this poem: life
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