किसी के मुस्कुराने से, कोई क्यों रूठ जाता है
हमारे दिल का ये शीशा, तभी फिर टूट जाता है
न जाने क्या लिखा है, हाथ की झूठी लकीरों में
जो अक्सर साथ होता है वही फिर छूट जाता है
'कवि अभिषेक ओमप्रकाश मिश्रा '
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem