जो दिन बचपन के गुजर गये, वो दिन भी कितने अच्छे थे.
बस एक लगन थी मिलने की, दिल भी तब अपने सच्चे थे.
मासूम सी चाहत दोनों की, जज्बात भी मानो कच्चे थे.
दिल की हेराफेरी करली, जब दिल से दोनों बच्चे थे.
एक जमाने से दिल मेरा बस तेरी याद में रोता है.
हमको तब मालूम न था, कि इश्क मे ऐसा होता है.
तुमने भी तो चाहा था, क्या हाल तुम्हारा है बोलो.
मेरे ख्यालों में खो कर, क्या तेरा चैन भी खोता है.
गर मिल जाओ तो पूरी लिख दूँ, छूटी हुई कहानी को.
लौट आओ तेरे नाम मैं कर दूँ, अपनी पूरी जवानी को.
इश्क मुकम्मल हो जाता गर साथ मेरा तुम दे देते.
चुप कर दो तुम खुद आकर, इस जालिम दुनिया बेगानी को.
By_' अभिषेक ओमप्रकाश मिश्रा '
'जो दिन बचपन के गुजर गये, वो दिन भी कितने अच्छे थे' बहुत प्यारी कविता है जिसमे अल्हड़पन के निर्मल प्यार व उसके बाद दिल में समा जाने वाली पीड़ा का मार्मिक चित्रण है. साथ ही आशा की एक किरण भी दिखाई देती है. धन्यवाद, अभिषेक जी.
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Childhood days were very good but those days are passed. Having emotion we still remember the old days and see children and feel their innocence. For a moment heart cries. This poem brings emotion in reader's mind. This is an excellent poem beautifully penned.10