कदम दो चार चलता हूँ मुकद्दर रूठ जाता है Poem by Abhishek Omprakash Mishra

कदम दो चार चलता हूँ मुकद्दर रूठ जाता है

Rating: 5.0

कदम दो चार चलता हूँ मुकद्दर रूठ जाता है
हर इक उम्मीद से रिश्ता हमारा टूट जाता है
जमाने को सम्भालूँ गर तो तुमसे दूर होता हूँ
तेरा दामन सम्भालूँ तो, जमाना छूट जाता है
'कवि अभिषेक ओमप्रकाश मिश्रा'

Tuesday, August 11, 2015
Topic(s) of this poem: love and art
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 11 August 2015

बहुत सुंदर... बहुत सुंदर. उक्त कविता पढ़ कर पाठक मुग्ध हुए बिना नहीं रह सकता. आपका अतिशय धन्यवाद, मित्र.

0 0 Reply
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success