================
उम्र चारसौ श्यामलकाया
शौर्योगर्वित उज्ज्वल भाल,
आपाद मस्तक दुग्ध दृश्य
श्वेत प्रभा समकक्षी बाल।
================
वो युद्धक थे अति वृद्ध पर
पांडव जिनसे चिंतित थे,
गुरुद्रोण सेअरिदल सैनिक
भय से आतुर कंपित थे।
================
उनको वधना ऐसा जैसे
दिनकर धरती पर आ जाए,
सरिता हो जाए निर्जल कि
दुर्भिक्ष मही पर छा जाए।
================
मेरुपर्वत दौड़ पड़े अचला
किंचित कहीं इधर उधर,
देवपति को हर ले क्षण में
सूरमा कोई कहाँ किधर?
================
ऐसे हीं थे द्रोणाचार्य रण
कौशल में क्या ख्याति थी,
रोक सके उनको ऐसे कुछ
हीं योद्धा की जाति थी।
================
शूरवीर कोई गुरु द्रोण का
मस्तक मर्दन कर लेगा,
ना कोई भी सोच सके
प्रयुत्सु गर्दन हर लेगा।
=================
किंतु जब स्वांग रचा द्रोण
का मस्तक भूमि पर लाए,
धृष्टद्युम्न हर्षित होकर जब
समरांगण में चिल्लाए।
=================
पवनपुत्र जब करते थे रण
भूमि में चंड अट्टाहस,
पांडव के दल बल में निश्चय
करते थे संचित साहस।
=================
गुरु द्रोण के जैसा जब
अवरक्षक जग को छोड़ चला,
जो अपनी छाया से रक्षण
करता था मग छोड़ छला।
=================
तब वो ऊर्जा कौरव दल में
जो भी किंचित छाई थी,
द्रोण के आहत होने से
निश्चय अवनति हीं आई थी।
=================
अजय अमिताभ सुमन
सर्वाधिकार सुरक्षित
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem