पवन बनके पीछा करुगा तुझे
मेघ बनकर खेलुगा तुमसे ।
चुमुगा तुझे निर्लज होकर मैं
हर कोमल तुम्हारी अंग ।
तेरी देह की खुशबू सुंघते
बसंत ऋतु तेरी पीछे लगा ।
मुरझाते हुए सब वृक्षलता में
कलीया फिर से खिलने लगा ।
बनके पुजारी तुम्हारी सौंदर्य की
करता हूं मैं, आरधना तेरी ।
पुष्प कली के रुप में दुसरा जीवन
य्रतिफल बनेगा हम्हारा प्रेम का ।
देखकर तेरी मादक रुप
तेरी प्रतिबिंम्ब लजाई खुद से ।
मदहोश हो के, खुद को भुलकर
तुम्हारी सायां ने पीछा की तुम को ।
पदचाप में मधुर संगीत की ध्वनि
और चाल में हरिण के चचंलता ।
तू हैं सृष्टि का अनुपम सृजना
मेरा पुष्प वाटिका की तू मलिका ।
रचनाकार ः- तुल्सी श्रेष्ठ
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