आकाश से टूटे तारों को, क्यों लोग,
किस्मत के तारे कहतें हैं,
बरखा के मौसम मैं क्यों लोग,
इक तारे को, बाँधा करते हैं,
किस्मत ऐसे बांध जाए तो फिर,
हम कर्म किया क्यों करते हैं,
किसी की आशा मैं क्यों हम,
जीने की आशा करते हैं,
क्षमता हम सब मैं है,
फिर क्यों किस्मत पर भरोसा करते हैं,
जीवन जीना कठिन तो है,
पर जीवन हम स्वयं ही क्यों, कठिन कर लिया करते हैं,
स्वयं पर भरोसा ना कर हम,
क्यों इश्वर की अवहेलना करते हैं,
इक परमात्मा की संतान हैं तो,
फिर जाती और धर्म मैं हम, ख़ुद को क्यों बांटा करते हैं,
हम इर्षा और दवेष मैं, ख़ुद को संजोय हुए,
कलुषित जीवन जिया क्यों करते हैं,
हम प्रेम भाव से परिपूर्ण ह्रदय को,
क्यों दूषित भावों से मैला करते हैं,
हम मुर्ख, उचित भावों को,
सुन क्यों अन्सूना करते हैं,
हम अपने ह्रदय के धरातल को,
भाव - सदभाव की बातों से दूर किया क्यों करते हैं,
ये सब प्रश्न, बड़े हैं निर्मम,
हम इन सब प्रश्नों से प्रेमी, आखिर क्यों भागा हम करते हैं,
निर्वान बब्बर
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