क्या है रज़ा ये - ये कैसी ख़ुदी है, (Kya Hai Raza Ye - Ye Kaisi Khudi Hai) Poem by Nirvaan Babbar

क्या है रज़ा ये - ये कैसी ख़ुदी है, (Kya Hai Raza Ye - Ye Kaisi Khudi Hai)



है यार बहुत, मुश्किल अब जीना,
चल यार मेरे, सो जाते हैं,
मिल कर चल, आते हैं, ख़ुदा से,
कुछ उससे, पूछ के आते हैं,

इतना मुश्किल, क्यों है जीना,
ये उससे, समझ कर आते हैं,
इतना दर्द, दिया दुनिया मैं,
जिस को, सह, नहीं पाते हैं,

बार - बार, दुनिया मैं भटक कर,
पास तेरे ही क्यूँ, आ जाते हैं,
फिर भी, तू ना, समझे क्यूँ, हमको,
हर बार क्यूँ, ऐसा होता है,

तू है नादां, याँ हम नादाँ हैं,
समझाने - समझने, आ जाते हैं,
तू तो ख़ुदा है, तेरा क्या है,
तू ही ख़ुदी है, तू ही रज़ा है,

अब तो रहम कर, बतलादो, ख़ुदा जी,
क्या है रज़ा ये,
ये कैसी ख़ुदी है,

निर्वान बब्बर

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Monday, June 2, 2014
Topic(s) of this poem: life
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