यूं अनंत लिखने बैठा तो सोचता क्या लिखूं?
क्या हसीना की अदावों पे लिखूं या वतन पे लिखूं,
या दिखी तस्वीर किसी भूखे बिलकते पे लिखूं
या मरते जवान और किसानों पे लिखूं,
या प्रेम में पड़े आशिक पर लिखूं
घर से विदा दहेज से मरी बेटी पे लिखूं,
नालायक बेपरवाह औलाद पर लिखूं
या बलात्कारी जल्लाद पर लिखूं।
सोचता हूं लिख दूं किसी रिश्वतखोर पर,
फिर क्यों न ज़ालिम सरकार पर लिखूं,
कसूरवार किसे मानू,
इस पाखंड प्रेमी युगल को,
या नेता के अभिमान को।
फीर जब ऐसी ही बात है,
हूं तो मैं भी इस खेल का हिस्सा,
तो सोचता हूं 'अनंत' क्यों न पहले अपने आप पर लिखूं।
BY: ANANT YADAV
( Author of Book Apni zhalak ye zindagi)
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