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तो में क्या करुँ? - To Mein Kya Karu? - Poem by Jinay Mehta
मेरी ज़िन्दगी चाहती है की मैँ रोता रहुँ,
ऐसे ज़िन्दगी ने ही मूँह मोड़ लिया तो मैँ क्या करुँ?
आगाज़ किया था परी-पूर्ण ज़िन्दगी जीने का,
जब अपने ही ज़िन्दगी तक़्सीम करे तो मैँ क्या करुँ? ,
बाद में अपनों ने ही मूँह मोड़ लिया तो मैँ क्या करुँ?
होंठों पे लगा कर मैंने जाम छोड़ दिया था,
लेकिन ज़िन्दगी चाहती है की मैँ उसका नशा करता रहुँ,
धोख़ा मिला ज़िन्दगी से जब पहोंचा पीने मयख़ाने में,
ज़िन्दगी ने ही मेहफ़िल से इस्तीफ़ा दे दिया तो मैँ क्या करुँ?
ऐसे ज़िन्दगी ने ही मूँह मोड़ लिया तो मैँ क्या करुँ?
चलने लगा था अदब से मेरी ज़िन्दगी की राह पर,
लेकिन ज़िन्दगी नही चाहती की मैँ उसके संग चलु,
मस्त उडी थी मेरे प्यार की पतंग ज़िन्दगी के संग,
पतंग ने ही ज़िन्दगी से डोर काट दी तो मैँ क्या करुँ?
अभी ज़िन्दगी की डोर ही कट गयी है तो मैँ कैसे जीऊँ?
मेरे लम्हें थम गए है ज़िन्दगी के इन्तेज़ार में,
और ज़िन्दगी चाहती की वक़्त के संग मैँ आगे बढु,
कौन बताये की ज़िन्दगी से ही मेरा वक़्त चलता है,
अब ज़िन्दगी मेरा वक़्त नही लौटा रही तो मैँ क्या करुँ?
ऐसे ज़िन्दगी ने ही मूँह मोड़ लिया तो मैँ क्या करुँ?
मेरा घर बना है आशियाना मेरी ज़िन्दगी के संग,
ज़िन्दगी कहे की मैँ उन दीवारों के बीच अकेला रहु,
कैसे समझाऊँ की मेरी ज़िन्दगी जहाँ मेरा ठिकाना है वहाँ,
इस वक़्त ज़िन्दगी का कोई ठिकाना नही तो मैँ क्या करुँ?
अब मेरे ठिकाने ने भी मूँह मोड़ लिया तो मैँ क्या करुँ?
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