बन काल तू ही काल का (BAN KAAL TU HI KAAL KA) Poem by Nirvaan Babbar

बन काल तू ही काल का (BAN KAAL TU HI KAAL KA)

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काल मारे हम सभी को, है काँपने, तू क्यों लगा,
वेग तुझमें है हवा सा अपने अंतर को जगा,

है तू सागर, मौज तेरी, ले जायेगी सब कुछ बहा,
चल जला, अंतर की ज्वाला, मुख को करले तू रवि,

बन प्रलय तू, बन काल तू ही काल का,
निश्चय तू कर ले जीत का, तेरी ही होगी अब विजय,

युग नया भी आएगा, पूर्ण करने तेरी विजय,
रोश को मन मैं बसा, अंगार बन सबको जला,

संसार है तेरा ही बस, है तेरे ही वास्ते,
तू कथा बन, बन मिसाल, हर कथा का सार बन,

एक बच्चे की तू ज़िद ले, ऐसा तू प्रहार कर,
हर कपट का नाश कर तू, शोक-सागर भूल जा,

बन अभिमन्यु संसार का तू, संसार का तू मूल बन,
बन तू ऐसा शूल जो, सीने मैं पाप के गड़ा,

परमात्मा जगत का सार है, तू ही तो उसका रूप है,
कण - कण मैं तेरे है वही, तू उसकी ही छाँव - धूप है,

निर्वान बब्बर

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