अपने निश्चय को तू पक्का कर,
हर अर्जित शक्ति को तू, अपना कर,
हर मुश्किल से तू आखें मिला,
ना सर को झुका, ना तू घुटने टेक,
तू स्वयं को इक चट्टान सा कर,
हर निश्चय को तू पहाड़ सा कर,
स्वयं को तू इतना उंचा कर,
हर राह बने, बस तेरे दम पर,
अनगिनत तूफां चाहे आते रहें,
तू छाती तान के खड़ा रहे,
हर मंजिल तलाश मैं हो तेरी,
तेरे होने मैं सबको आस रहे,
तू आम रहकर भी ख़ास रहे,
सदा अलग तेरा अंदाज़ रहे,
तू हर सिन्धु का आधार रहे,
नभ मैं चाहे तेरा वास रहे, फिर भी धरा पर तेरा अभिमान रहे,
चाहे प्रलय भी आ जाए, तू ज्वाला बन कर राज करे,
अग्नि तुझ मैं चाहे जलती रहे, पर तेरा अस्तित्व सदा ही वरुण रहे,
तू स्वयं ही है अक्षय ज्वाला,
ख़ुद रवि को तुझ से आस रहे,
तू क्या है, तुझे स्वयं भी पता नहीं,
तू क्या है और तू क्या - क्या नहीं,
तू तड़ित है, विकराल है तू,
समय की चलती तू सदा चाल रहे,
निर्वान बब्बर
Bahut hi achha laga. Hinidi apni Rashtrabhasha hai. meri bhi kuchh hindi kavitayen hain. kripya padhen.
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nice poem keep it up.....