Ek Pal Kam Nhi Hai Poem by milap singh bharmouri

Ek Pal Kam Nhi Hai

कई दिनों से बैठा इन्सान
सपने संजौता रहता है
फर्श पर बिखरे मोतिओं को
उठा - उठा कर पिरौता रहता है

तन्हाई में सपने संजोना
माला के मोती पिरोना
शायद उसकी फितरत है
पर मोतिओं से पिरोई
इस माला को
शन से फिर टूट जाने के लिए
शायद एक पल कम नही है

नये लोगों ने पाले है शौक
सचमुच रखते है कितना जोश
देखा -देखी में बम्ब बनाना
इक - दूजे को नीचा दिखाना

खेल रहे है विज्ञानं से
मानव जाति को भुलाकर
कर रहे है हाथापाई
मजहब को हथियार बनाकर

सोचो जरा
मानव जाति को मिटाने के लिए
एटम बम्ब के बटन को दबाने के लिए
शायद एक पल कम नही है

COMMENTS OF THE POEM
Shraddha The Poetess 12 September 2013

vryy vryy nice........... i invite u to read mine...specially hindi ones[tujhe bulaya]

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