Fir Bhi Tumse Mohabat Hai Poem by milap singh bharmouri

Fir Bhi Tumse Mohabat Hai

फिर भी तुमसे मोहबत है


फिर भी तुमसे मोहबत है
तोड़ दे दिल दिल मेरा इजाजत है

तुज्को मैने दिल से चाहा है
बस यही मेरी हकीकत है

बेबफा हो तुम तो भी क्या
मुझको को तो बफा की आदत है

महंगा पड़ जायेगा नजर मिलाना भी
कहने को तो फक्त शरार्त है

काम आएगा अब मयखाना ही
जहाँ रोज 'मिलाप' कयामत है

संभल के चल इश्क की राह पे
इसमें सपनों सी नजाकत है


मिलाप सिंह

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