तेरी क्या थाह पाएं ऐ ग़म - ऐ - ज़िन्दगी,
कुछ देर चलता हूँ, और थम जाता हूँ,
मैं आज बात - बात पर ख़ुद मैं ही सिमट जाता हूँ,
कुछ देर जीता हूँ ज़िन्दगी अपनी और कुछ देर मैं ही मर जाता हूँ,
तेरे हर राज़ अब मैं किस से कहूँ,
तेरे हर राज़ को सीने मैं दबाए.... बस जिए जाता हूँ,
तेरे हर राज़ सदा रहेंगे दिल मैं,
तेरे हर राज़ को दिल मैं रख, क़यामत का इंतज़ार किए जाता हूँ,
डर लगता हैं अब यारो जीने से,
हर धड़कन की आवाज़ से, सिहर जाता हूँ,
बाँध लेता हूँ मैं ख़ुद ही, ख़ुद को, ख़ुद मैं,
तन की गठरी को बेवज्हा, ढोए जाता हूँ,
बड़ा सितमग़र है ये वक़्त का चक्का,
बढता है बस और सब कुछ कुचल जाता है,
नहीं समझता ये, किसी भावना का बहाव,
अपने ही मन की बस, अपने ही मन की किए जाता है.....
निर्वान बब्बर
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