Gujarish Poem by KV. KUNAL

Gujarish

जो मेरी जिन्दगी की शाम है, मेरी आशिक़ी जिसकी पहचान हैं। मृगनी जैसी नैनो वाली, ओ एक हसीना गुमनाम हैं ।
गंगा जैसी पवन है जो, रिमझिम बर्षा का सावन है जो । आती है वो बहार लेकर, मुस्कुराती है ओठों पर प्यार लेकर । बलखा के आना…थोड़ा शरमा, धीरे धीरे रेशमी बालो का सहलाना । चाहता हु कुछ कहना, की मुझे तेरे ही दिल में है रहना । पर कसम ख़ुदा की डरता हू, न चाहकर भी उसी पर मरता हु । उसे देख कर घबड़ा जाता हु, बेबकुफ़ हू... शरमा जाता हु । नजरों से नजरों में, प्यार की बातें करता हू। पर जुबां से कुछ कहने में डरता हु । लेकिन ओ मेरी आशिक़ी है.… गुमान हैं, कुछ भी हो मेरा अभिमान है वह

Thursday, December 4, 2014
Topic(s) of this poem: love hurts
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