मैं जो वफ़ा कहूं, तो तुम गुनाह सुनो Poem by Janid Kashmiri

मैं जो वफ़ा कहूं, तो तुम गुनाह सुनो

मैं जो वफ़ा कहूं, तो तुम गुनाह सुनो
मैं जो मोहब्बत कहूं, तुम फ़रेब का किस्सा सुनो

दिल की सदा को मैं वफ़ा का नाम देता हूँ
तुम मेरे हर लफ़्ज़ को झूठ का हिस्सा सुनो

मैं जो कहूं कि तुम ही हो मेरी आख़िरी मंज़िल
तुम वो सुनो, जो एक भटके का रास्ता सुनो

जब मैं कहूं कि मेरी रूह तुम से जुड़ी है
तुम सच को ना मानो, फ़क़त धोखा सुनो

मैं जब कहूं, मैं तुमसे प्यार करता हूँ
तुम वो सुनो, कि जैसे कोई ख़ता सुनो

क्यों तुम्हें मेरी वफ़ा कभी सच नहीं लगती
मैं जो क़सम खाऊं, तुम मेरी सज़ा सुनो

मैं जो वफ़ा कहूं, तो तुम गुनाह सुनो
मैं जो मोहब्बत कहूं, तुम फ़रेब का किस्सा सुनो

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